भूल गया हूँ
हर दिन के कामों में
हसना भूल गया हूँ
रोज की भाग दौड़ में
मिलना भूल गया हूँ
सुबह - सुबह उठ कर
काम ही याद आते हैं
बहुत कुछ करने की आस में
जीना भूल गया हूँ
मंज़िल पाने की चाह में
दर - दर भटक रहा हूँ
कुछ हासिल करने की चाह में
अपनों से दूर हो गया हूँ
समय की इस रफ़्तार में
सोच बदल गयी है
व्यस्तता की इस कोठरी में
हसना भूल गया हूँ
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